Wednesday 13 October 2021

Quotes in Hindi


Quotes in Hindi for Motivation and Positivity - मोटिवेशन के लिए कोट्स और सुविचार पढ़ें



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आपके हर दिन को कुछ बेहतर बनाते हैं सुविचार, कुछ कोट्स (quotes) हिंदी में

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Tuesday 12 October 2021

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Saturday 9 October 2021

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 Quotes in Hindi for Motivation and Positivity - मोटिवेशन के लिए कोट्स और सुविचार पढ़ें

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Friday 1 October 2021

एक कहानी - भक्त के वचन की लाज


सेवाराम और मोतीलाल दो घनिष्ठ मित्र थे ।

दोनों ही गली-गली जाकर पीठ पर पोटली लादकर कपड़े बेचने का काम करते थे ।



सर्दियों के दिन थे वह गांव-गांव जाकर कपड़े बेच रहे थे तभी एक झोपड़ी के बाहर एक बुढ़िया जो कि ठंड से कांप रही थी तो.. 

सेवाराम ने अपनी पोटली से एक कंबल निकालकर उस माई को दिया और कहां माई तुम ठंड से कांप रही हो यह कंबल ओढ़ लो...

बूढ़ी माई कंबल लेकर बहुत खुश हुई और जल्दी जल्दी से उसने कंबल से अपने आप को ढक लिया और सेवाराम को खूब सारा आशीर्वाद दिया।

तभी उसने सेवाराम को कहा मेरे पास पैसे तो नहीं है लेकिन रुको मैं तुम्हें कुछ देती हूं। 

वह अपनी झोपड़ी के अंदर गई तभी उसके हाथ में एक बहुत ही सुंदर छोटी सी ठाकुर जी की प्रतिमा थी।

वह सेवाराम को देते हुए बोली कि मेरे पास देने के लिए पैसे तो नहीं है लेकिन यह ठाकुर जी है। 



इसको तुम अपनी दुकान पर लगा कर खूब सेवा करना देखना तुम्हारी कितनी तरक्की होती है। यह मेरा आशीर्वाद है।

मोतीराम बुढ़िया के पास आकर बोला, अरे ओ माता जी क्यों बहाने बना रही हो.. 

अगर पैसे नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन हमें झूठी तसल्ली मत दो हमारे पास तो कोई दुकान नहीं है। 

हम इसको कहां लगाएंगे। इनको तुम अपने पास ही रखो।

लेकिन सेवाराम जो कि बहुत ही नेक दिल था और ठाकुर जी को मानने वाला था वह बोला.. 

नहीं-नहीं माताजी अगर आप इतने प्यार से कह रही हैं तो यह आप मुझे दे दो। पैसों की आप चिंता मत करो.. 

सेवाराम ने जल्दी से अपने गले में पढ़े हुए परने में ठाकुर जी को लपेट लिया और उनको लेकर चल पड़ा।

बुढ़िया दूर तक उनको आशीर्वाद दे रही थी.. हरी तुम्हारा ध्यान रखेंगे ठाकुर जी तुम्हारा ध्यान रखेंगे। 

वह तब तक आशीर्वाद देती रही जब तक कि वह दोनों उनकी आंखों से ओझल ना हो गए।

ठाकुर जी का ऐसा ही चमत्कार हुआ अब धीरे-धीरे दोनों की कमाई ज्यादा होने लगी.. 

अब उन्होंने एक साइकिल खरीद ली.. अब साइकिल पर ठाकुरजी को आगे टोकरी में रखकर और पीछे पोटली रखकर गांव गांव कपड़े बेचने लगे ।

अब फिर उनको और ज्यादा कमाई होने लगी तो उन्होंने एक दुकान किराए पर ले ले और वहां पर ठाकुर जी को बहुत ही सुंदर आसन पर विराजमान करके दुकान का मुहूर्त किया।

धीरे-धीरे दुकान इतनी चल पड़ी कि अब सेवाराम और मोती लाल के पास शहर में बहुत ही बड़ी बड़ी कपड़े की दुकाने और कपड़े की मिलें हो गई।

एक दिन मोतीलाल सेवाराम को कहता कि देखो आज हमारे पास सब कुछ है यह हम दोनों की मेहनत का नतीजा है.. 

लेकिन सेवाराम बोला नहीं नहीं हम दोनों की मेहनत के साथ-साथ यह हमारे ठाकुर जी हमारे हरि की कृपा है।

मोतीलाल बात को अनसुनी करके वापस अपने काम में लग गया।

एक दिन सेवाराम की सेहत थोड़ी ढीली थी इसलिए वह दुकान पर थोड़ी देरी से आया.. 

.

मोतीलाल बोला.. अरे दोस्त आज तुम देरी से आए हो तुम्हारे बिना तो मेरा एक पल का गुजारा नहीं तुम मेरा साथ कभी ना छोड़ना। 

सेवाराम हंसकर बोला अरे मोतीलाल चिंता क्यों करते हो मैं नहीं आऊंगा तो हमारे ठाकुर जी तो है ना।

यह कहकर सेवा राम अपने काम में लग गया। पहले दोनों का घर दुकान के पास ही होता था लेकिन अब दोनों ने अपना घर दुकान से काफी दूर ले लिया। 

अब दोनों ही महल नुमा घर में रहने लगे। दोनों ने अपने बच्चों को खूब पढ़ाया लिखाया। 

सेवाराम के दो लड़के थे दोनों की शादी कर दी थी और मोती लाल के एक लड़का और एक लड़की थी। 

मोतीलाल ने अभी एक लड़के की शादी की थी अभी उसने अपनी लड़की की शादी करनी थी। 

सेहत ढीली होने के कारण सेवाराम अब दुकान पर थोड़े विलंब से आने लगा तो एक दिन वह मोतीलाल से बोला.. 

अब मेरी सेहत ठीक नहीं रहती क्या मैं थोड़ी विलम्ब से आ सकता हूं..

मोतीलाल ने कहा हां भैया तुम विलम्ब से आ जाओ लेकिन आया जरूर करो मेरा तुम्हारे बिना दिल नहीं लगता।

फिर अचानक एक दिन सेवाराम 12:00 बजे के करीब दुकान पर आया.. 

लेकिन आज उसके चेहरे पर अजीब सी चमक थी चाल में एक अजीब सी मस्ती थी चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी ।

वह आकर गद्दी पर बैठ गया... मोतीलाल ने कहा भैया आज तो तुम्हारी सेहत ठीक लग रही है..

सेवाराम ने कहा भैया ठीक तो नहीं हूं लेकिन आज से मैं बस केवल 12:00 बजे आया करूंगा और 5:00 बजे चला जाया करूंगा। मैं तो केवल इतना ही दुकान पर बैठ सकता हूं।

मोतीलाल ने कहा कोई बात नहीं जैसी तुम्हारी इच्छा..

अब तो सेवाराम रोज 12:00 बजे आता और 5:00 बजे चला जाता लेकिन उसकी शक्ल देखकर ऐसा नहीं लगता था कि वह कभी बीमार भी है। 

लेकिन मोतीलाल को अपने दोस्त पर पूरा विश्वास था कि वह झूठ नहीं बोल सकता और मेहनत करने से वह कभी पीछे नहीं हट सकता।

एक दिन मोतीलाल की बेटी की शादी तय हुई तो वह शादी का निमंत्रण देने के लिए सेवाराम के घर गया।

घर जाकर उसको उसके बेटा बहू सेवाराम की पत्नी सब नजर आ रहे थे.. लेकिन सेवाराम नजर नहीं आ रहा था..

उसने सेवाराम की पत्नी से कहा भाभी जी सेवाराम कहीं नजर नहीं आ रहा..

उसकी पत्नी एकदम से हैरान होती हुई बोली यह आप क्या कह रहे हैं ?

तभी वहां उसके बेटे भी आ गए और कहने लगी काका जी आप कैसी बातें कर रहे हो.. हमारे साथ कैसा मजाक कर रहे हो.. 

मोतीलाल बोला कि मैंने ऐसा क्या पूछ लिया मैं तो अपने प्रिय दोस्त के बारे में पूछ रहा हूं.. 

क्या उसकी तबीयत आज भी ठीक नही है..? क्या वह अंदर आराम कर रहा है..?

मै खुद अंदर जाकर उसको मिल आता हूं...

मोतीलाल उसके कमरे में चला गया लेकिन सेवाराम उसको वहां भी नजर नहीं आया..

तभी अचानक उसकी नजर उसके कमरे में सेवाराम के तस्वीर पर पड़ी..

वह एकदम से हैरान होकर सेवा राम की पत्नी की तरफ देखता हुआ बोला...

अरे भाभी जी यह क्या आपने सेवाराम की तस्वीर पर हार क्यों चढ़ाया हुआ है.. 

सेवा राम की पत्नी आंखों में आंसू भर कर बोली..!! मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी भैया कि आप ऐसा मजाक करेंगे..!!

मोतीलाल को कुछ समझ नहीं आ रहा था.. 

तभी सेवाराम का बेटा बोला क्या आपको नहीं पता कि पिताजी को गुजरे तो 6 महीने हो चुके हैं.!!

मोतीलाल को तो ऐसा लगा कि जैसे उसके सिर पर बिजली गिर पड़ी हो।

वह एकदम से थोड़ा लड़खडाता हुआ पीछे की तरफ हटा और बोला ऐसा कैसे हो सकता है.. वह तो हर रोज दुकान पर आते हैं। 

बीमार होने के कारण थोड़ा विलंब से आता है.. 

वह 12:00 बजे आता है और 5:00 बजे चला जाता है..

उसकी पत्नी बोली ऐसा कैसे हो सकता है कि आपको पता ना हो.. 

आप ही तो हर महीने उनके हिस्से का मुनाफे के पैसे हमारे घर देने आते हो.. 

6 महीनों से तो आप हमें दुगना मुनाफा दे कर जा रहे हो.. 

मोतीलाल का तो अब सर चकरा गया उसने कहा मैं तो कभी आया ही नहीं..!! 

6 महीने हो गए यह क्या मामला है.. 

तभी उसको सेवाराम की कही बात आई मैं नहीं रहूंगा तो मेरे हरी है ना मेरे ठाकुर जी है ना वह आएंगे...

मोतीलाल को जब यह बातें याद आई तो वह जोर जोर से रोने लगा और कहने लगा हे ठाकुर जी... हे हरि आप अपने भक्तों के शब्दों का कितना मान रखते हो.. 

जोकि अपने विश्राम के समय.. मंदिर के पट 12:00 बजे बंद होते हैं और 5:00 बजे खुलते हैं.. 

और आप अपने भक्तों के शब्दों का मान रखने के लिए कि मेरे हरी आएंगे मेरे ठाकुर जी आएंगे तो आप अपने आराम के समय मेरी दुकान पर आकर अपने भक्तों का काम करते थे.. 

इतना कहकर वह फूट-फूट कर रोने लगा और कहने लगा ठाकुर जी आप की लीला अपरंपार है.. 

मैं ही सारी जिंदगी नोट गिनने में लगा रहा असली भक्त तो सेवाराम था जो आपका प्रिय था..

आपने उसको अपने पास बुला लिया और उसके शब्दों का मान रखने के लिए आप उसका काम खुद स्वयं कर रहे थे...

और उसके हिस्से का मुनाफा भी उसके घर मेरे रूप में पहुँचा रहे थे..

इतना कहकर वह भागा भागा दुकान की तरफ गया और वहां जाकर जहां पर ठाकुर जी जिस गद्दी पर आकर बैठते थे.. 

जहां पर अपने चरण रखते थे वहां पर जाकर गद्दी को अपने आंखों से मुंह से चुमता हुआ चरणों में लौटता हुआ जार जार रोने लगा..

और ठाकुर जी की जय जयकार करने लगा।

ठाकुर जी तो हमारे ऐसे हैं.. सेवाराम को उन पर विश्वास था कि मैं ना रहूंगा तो मेरे ठाकुर जी मेरा सारा काम संभालेंगे।

..............................

विश्वास से तो बेड़ा पार है इसलिए हमें हर काम उस पर विश्वास रख कर अपनी डोरी उस पर छोड़ देनी चाहिए। 

जिनको उन पर पूर्ण विश्वास है वह उनकी डोरी कभी भी नहीं अपने हाथ से छूटने देंते।

Hindi stories , hindi kahani, motivation, acche vichar, suvichar

Wednesday 29 September 2021

 

Quotes in Hindi for Motivation and Positivity - मोटिवेशन के लिए कोट्स और सुविचार पढ़ें

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Tuesday 28 September 2021

एक कहानी - माता यशोदा से विदाई

नंद बाबा चुपचाप रथ पर कान्हा के वस्त्राभूषणों की गठरी रख रहे थे। दूर ओसारे में मूर्ति की तरह शीश झुका कर खड़ी यशोदा को देख कर कहा- दुखी क्यों हो यशोदा, दूसरे की वस्तु पर अपना क्या अधिकार?

यशोदा ने शीश उठा कर देखा नंद बाबा की ओर, उनके अश्रुओं में जल भर आया था। नंद निकट चले आये। यशोदा ने भारी स्वर से कहा- तो क्या अब कान्हा पर हमारा कोई अधिकार नहीं? 


नंद ने कहा- अधिकार क्यों नहीं, कन्हैया कहीं भी रहे, पर रहेगा तो हमारा ही लल्ला न! पर उसपर हमसे ज्यादा देवकी वसुदेव का अधिकार है, और उन्हें अभी कन्हैया की आवश्यकता भी है।


यशोदा ने फिर कहा- तो क्या मेरे ममत्व का कोई मोल नहीं?

नंद बाबा ने थके हुए स्वर में कहा- ममत्व का तो सचमुच कोई मोल नहीं होता यशोदा। पर देखो तो, कान्हा ने इन ग्यारह वर्षों में हमें क्या नहीं दिया है।


 उम्र के उत्तरार्ध में जब हमने संतान की आशा छोड़ दी थी, तब वह हमारे आंगन में आया। तुम्हें नहीं लगता कि इन ग्यारह वर्षों में हमने जैसा सुखी जीवन जिया है, वैसा कभी नहीं जी सके थे।


 दूसरे की वस्तु से और कितनी आशा करती हो यशोदा, एक न एक दिन तो वह अपनी वस्तु मांगेगा ही न! कान्हा को जाने दो यशोदा !


यशोदा से अब खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, वे वहीं धरती पर बैठ गयी, कहा- आप मुझसे क्या त्यागने के लिए कह रहे हैं, यह आप नहीं समझ रहे।


नंद बाबा की आंखे भी भीग गयी थीं। उन्होंने हारे हुए स्वर में कहा- तुम देवकी को क्या दे रही हो यह मुझसे अधिक कौन समझ सकता है यशोदा! आने वाले असंख्य युगों में किसी के पास तुम्हारे जैसा दूसरा उदाहरण नहीं होगा। यह जगत सदैव तुम्हारे त्याग के आगे नतमस्तक रहेगा।


यशोदा आँचल से मुह ढांप कर घर मे जानें लगीं तो नंद बाबा ने कहा- अब कन्हैया तो भेज दो यशोदा, देर हो रही है।

यशोदा ने आँचल को मुह पर और तेजी से दबा लिया, और अस्पष्ट स्वर में कहा- एक बार उसे खिला तो लेने दीजिये, अब तो जा रहा है। कौन जाने फिर...


*नंद चुप हो गए।*


यशोदा माखन की पूरी मटकी ले कर ही बैठी थीं, और भावावेश में कन्हैया की ओर एकटक देखते हुए उसी से निकाल निकाल कर खिला रही थी। कन्हैया ने कहा- एक बात पूछूं मइया?


यशोदा ने जैसे आवेश में ही कहा- पूछो लल्ला।


तुम तो रोज मुझे माखन खाने पर डांटती थी मइया, फिर आज अपने ही हाथों क्यों खिला रही हो?


यशोदा ने उत्तर देना चाहा पर मुह से स्वर न फुट सके। वह चुपचाप खिलाती रही। कान्हा ने पूछा- क्या सोच रही हो मइया?


यशोदा ने अपने अश्रुओं को रोक कर कहा- सोच रही हूँ कि तुम चले जाओगे तो मेरी गैया कौन चराएगा


कान्हा ने कहा- तनिक मेरी सोचो मइया, वहां मुझे इस तरह माखन कौन खिलायेगा? मुझसे तो माखन छिन ही जाएगा मइया।


यशोदा ने कान्हा को चूम कर कहा- नहीं लल्ला, वहां तुम्हे देवकी रोज माखन खिलाएगी।


कन्हैया ने फिर कहा- पर तुम्हारी तरह प्रेम कौन करेगा मइया?


अबकी यशोदा कृष्ण को स्वयं से लिपटा कर फफक पड़ी। मन ही मन कहा- यशोदा की तरह प्रेम तो सचमुच कोई नहीं कर सकेगा लल्ला, पर शायद इस प्रेम की आयु इतनी ही थी।


कृष्ण को रथ पर बैठा कर अक्रूर के संग नंद बाबा चले तो यशोदा ने कहा- तनिक सुनिए न, आपसे देवकी तो मिलेगी न? उससे कह दीजियेगा, लल्ला तनिक नटखट है पर कभी मारेगी नहीं।


नंद बाबा ने मुह घुमा लिया। यशोदा ने फिर कहा- कहियेगा कि मैंने लल्ला को कभी दूब से भी नहीं छुआ, हमेशा हृदय से ही लगा कर रखा है।


नंद बाबा ने रथ को हांक दिया। यशोदा ने पीछे से कहा- कह दीजियेगा कि लल्ला को माखन प्रिय है, उसको ताजा माखन खिलाती रहेगी। बासी माखन में कीड़े पड़ जाते हैं।


नंद बाबा की आंखे फिर भर रही थीं, उन्होंने घोड़े को तेज किया। यशोदा ने तनिक तेज स्वर में फिर कहा- कहियेगा कि बड़े कौर उसके गले मे अटक जाते हैं, उसे छोटे छोटे कौर ही खिलाएगी।


नंद बाबा ने घोड़े को जोर से हांक लगाई, रथ धूल उड़ाते हुए बढ़ चला।

यशोदा वहीं जमीन पर बैठ गयी और फफक कर कहा- कृष्ण से भी कहियेगा कि मुझे स्मरण रखेगा।


उधर रथ में बैठे कृष्ण ने मन ही मन कहा- तुम्हें यह जगत सदैव स्मरण रखेगा मइया। तुम्हारे बाद मेरे जीवन मे जीवन बचता कहाँ है ?


 लीलायें तो ब्रज में ही छूट जायेंगी..


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Friday 24 September 2021

जब दुःख सहने के अलावा कोई रास्ता ना हो

 

जब जीवन में बहुत दर्द एक साथ आता है, और सहने के अलावा और कोई चारा नही होता तो हमारे सामने दो ही रास्ते होते हैं - (1)एक तो यह की आप उस दुःख में गहरे डूब जाएं और अवसाद या depression का शिकार हो जाएं, 
             (2) और दूसरा ये कि आप ये समझे कि ईश्वर आपको संकेत दे रहा है अपने अंदर की आतंरिक ऊर्जा और प्रेम को जगाने का। 



असीमित दुःख आपको असीमित प्रेम की ओर खींचने की शक्ति रखता है। वह आपको ईश्वर के करीब ले जाता है, जिसके पास जाने से हम सुख और दुःख दोनों से ही दूर हो जाते हैं। 

बस ज़रूरत यह है कि ऐसे समय में हम नकारात्मक ऊर्जा से दूर रहें एवं खुद को उन कार्यो में, उन activities में लगाये जो हमें उस समय को थोड़ा टल जाने में मदद करें, और इस काली रात्रि के बाद के उजाले में हम आगे का रास्ता देख सकें। 
ये activities, या कार्य कौनसे हैं जिनसे कि आप नकारात्मकता से बच सकें , अगली पोस्ट में। 

Tuesday 21 September 2021

 

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Monday 20 September 2021

जब अच्छा करने पर भी दिल दुखे तो क्या करें



जब अच्छा करने पर भी दिल दुखे तो क्या करें 

 

When people dislike you even when you do good to them

What should you do when people hurt you

 

जीवन मे अक्सर ऐसा होता है कि हम अच्छा करते हैं पर बदले मे हमे बुराई मिलती है कभी ऐसा होता है कि जिसके साथ अच्छा किया वो कुछ गलत शब्द हमारे लिए कहता है और कभी ऐसा होता है कि लोग काम होने के बाद भूल जाते हैं, और दोबारा काम पड़ने पर ही याद करते हैं  

 














  जब हम किसी के लिए अच्छा करें, भलाई करें, फिर भी आपको बदले मे बुराई सुन ने को मिले तो क्या करें। तारीफ के बदले कोई कमी निकाले तो क्या करें।

       हमारा स्वभाव है अच्छा करने का, दूसरे का स्वभाव है बुरा करने का किसी का अच्छा तब ही करें जब ऐसा करने से खुद को अच्छा महसूस होता हो। वरना उस व्यक्ति की तरफ से neutral या तटस्थ हो जाएँ। इस से आपका दिल नहीं दुखेगा। 

      जब भी कभी ऐसा हो, तो ये जान लें की आपके emotions उस व्यक्ति के कंट्रोल मे हैं, आपके कंट्रोल मे नहीं। और वह जब चाहे आपको दुखी या खुश कर सकता है। ये स्तिथि  कोई खास अच्छी नहीं है। ये आपके मन की शांति को खराब कर सकती है। 

-    जब दूसरों को यह पता होता है तो कई बार वे आपको कंट्रोल करके आपका फायदा भी उठाते हैं अगर ये लोग आपके अपने हैं तो दायित्व पूरे करें पर मन मे ना लें , ना ही किसी प्रकार की अच्छाई की उम्मीद करे  


-   दूसरे
को अपनी आखो से देखने की आदत है, आपको अपनी। अगर आपका मन अच्छा है तो आपको अच्छा ही दिखेगा, और दूसरे को बुरा चाहे आप कितना भी अच्छा क्यू कर ले  , क्यूकी ये उस व्यक्ति और आपके  स्वभाव पर निर्भर करता है व्यक्ति अपने स्वभाव नहीं छोड़ते। 


-    कभी कभी ये बुरा बोलने वाले आपके अपने घर मे ही होते हैं। इस से दिल ज़्यादा दुखता है। बाहर कोई कुछ भी बोल दे वो आपको ज़्यादा अफफेक्ट नहीं करता। पर आपके अपने जब दिल दुखाते हैं तब ज़्यादा बुरा लगता है। जब ऐसी कंडिशन मे आप होते हैं तो यकीन मानिए ईश्वर चाहता है की आप तारीफ  के चार बोल की इच्छा से बाहर निकाल आगे कुछ करें और अपनी खुशी अपने भीतर ही ढूँढे और ऐसी असीम शांति तो पा लें जिसको कोई डिस्टर्ब नहीं कर सकता आपको कोई खुश या दुखी नहीं कर सकता आपके जब इस स्तिथि मे जाते हैं तो सबसे साथ होकर भी और ना होकर भी आनंद मे रहने लगते हैं  


o    अगर आपको ऐसा लगता है कि मुझे ही बुरे लोग क्यों मिलते हैं तो ये जान लीजिए कि आप अकेले नही हैं। अगर आपको विश्वास हो तो किसी भी इंसान से पूछ लें कि क्या उसका दिल लोगो ने दुखाया है। क्या उसको अच्छे लोग कम और बुरे लोग ज़्यादा मिले हैं। सबका जवाब हाँ में ही आएगा। 

o    तो इसका मतलब ये दोष हम सबमे है। कही ना कही हम सब अच्छे और बुरे हैं किसी ना किसी के लिए। 


o    ईश्वर के अलावा कोई परफेक्ट नहीं है, सबमे कुछ ना कुछ दोष ज़रूर है। इस बात को हम जितना जल्दी एक्सेप्ट कर लें उतना ही अच्छा है। जब हम ऐसा कर लेंगे तो हम स्वीकार कर पाएंगे सबको उनके गुण दोष के साथ। 


o    वास्तव में मनुष्य हर जगह ईश्वर को ही ढूंढता है। उसकी चित्त वृत्ति जाने अनजाने ईश्वर की ओर ही होती है। शांति, उल्लास, प्रेम, ज्ञान, परफेक्शन , कभी ना छूटने वाला साथ, ये सब ईश्वर के ही गुण हैं। पर हम जब अपूर्ण में पूर्णता को ढूँढ़ते हैं तब दुखी होते हैं।