एक सरोवर के तट पर एक खूबसूरत बगीचा था। इसमें अनेक प्रकार के फूलों के पौधे लगे हुए थे। लोग वहां आते, तो वे वहां खिले तमाम रंगों के गुलाब के फूलों की तारीफ जरूर करते। एक बार एक गुलाबी रंग के बहुत सुंदर गुलाब के पौधे के एक पत्ते के भीतर यह विचार पदा हो गया कि सभी लोग फूल की ही तारीफ करते हैं, लेकिन पत्ते की तारीफ कोई नहीं करता। इसका मतलब यह है कि मेरा जीवन ही व्यर्थ है।
यह विचार आते ही पत्ते के अंदर हीन भावना घर करने लगी और वह मुरझाने लगा। कुछ दिनों बाद बहुत तेज तूफान आया। जितने भी फूल थे, वे पंखुड़ी-पंखुड़ी होकर हवा के साथ न जाने कहां चले गए। चूंकि पत्ता अपनी हीनभावना से मुरझाकर कमजोर पड़ गया था, इसलिए वह भी टूटकर, उड़कर सरोवर में जा पड़ा। पत्ते ने देखा कि सरोवर में एक चींटी भी आकर गिर पड़ी थी और वह अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी। चींटी को थकान से बेदम होते देख पत्ता उसके पास आ गया। उसने चींटी से कहा - घबराओ मत, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें किनारे पर ले चलूंगा।
चींटी पत्ते पर बैठ गई और सही-सलामत किनारे तक आ गई। चींटी इतनी कृतज्ञ हो गई कि पत्ते की तारीफ करने लगी। उसने कहा - मुझे तमाम पंखुड़ियां मिलीं, लेकिन किसी ने भी मेरी मदद नहीं की, लेकिन आपने तो मेरी जान बचा ली। आप बहुत ही महान हैं।
यह सुनकर पत्ते की आंखों में आंसू आ गए। वह बोला- धन्यवाद तो मुझे देना चाहिए कि तुम्हारी वजह से मैं अपने गुणों को जान सका। अभी तक तो मैं अपने अवगुणों के बारे में ही सोच रहा था, लेकिन आज अपने गुणों को पहचानने का अवसर मिला।
कथा-मर्म : किसी से तुलना करके हीन-भावना पैदा करने की बजाय सक्रिय होकर अपने भीतर के गुणों को पहचानना चाहिए
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