“अरे ! आपका योग , ध्यान इत्यादि में मन है ?? एक बार हमारे शिविर में आइये, आपको सही पद्यति हम सिखाएंगे”. पर मै खुद ही वो सब कर लेती हूँ और मुझसे अधिक आप मुझे कैसे जान सकते हैं . “आप हमारे यहाँ आइये एक बार और हमारे गुरूजी को सुनिए” . वो जो कहानिया सुनाएँगे वो मैंने किताबो में पहले ही पढ़ी हुई हैं . “ हमारे आश्रम में आप जैसे बहुत से युवा आते हैं और देखिये उनका कायापलट ही हो जाता है” . तो फिर आप जेलों में जा कर ये धर्मार्थ क्यों नहीं करते ?? “ देखिये बिना गुरु के आपको कोई ज्ञान नहीं मिल सकता .” मतलब आपके हिसाब से जिसने मुझे बनाया है उससे मेरी सीधी बात नहीं हो सकती . बिचोलिये की ज़रूरत है. मैंने तो सुना है गुरु ढूँढने से नहीं मिलते यहाँ तो ज़बरदस्ती मिल रहे हैं . और कृपया ये बता दीजिये की दुनिया के सबसे पहले ज्ञानवान व्यक्ति का गुरु कौन था ?? “आप ईश्वर को नहीं समझती हैं हम समझा सकते हैं , उससे जुड़ना ज़रूरी है “. जी धन्यवाद पर पहले मै खुद से जुड़ लूँ तब उसकी सोचूंगी . …….. मुसीबत ही मुसीबत है , हर जगह लालफीताशाही है और हर कोई ज्ञान बाटने में तुला है , वो भी बिना मांगे .
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